खटीमा
खटीमा से मेरा लगाओ थोड़ा सा ज्यादा है । क्योंकि ये मेरी जन्म भूमि है । इसलिए छोटे से कस्बे से आप सभी को रूबरू कराऊं, मकरपुर जो खटीमा का पुराना नाम है । बड़े बुर्जुग लोग बताते है के इस छेत्र में पहले खैर का जंगल हुआ करता था खटीमा के पूर्व में चंपावत तथा उत्तर में नैनीताल जनपद लगता है ।
1960 में बना थारू राजकीय इंटर कॉलेज आज भी खटीमा के छात्रों का भविष्य उज्ज्वल कर रहा है। यह से पड़े छात्र आज के समय में अच्छे पदों पर है और देश के सेवा कर रहे है। और आगे चलकर भी करते रहेंगे ।
लेकिन खटीमा की इस वीर धरती ने जख्म भी उतने ही गहरे सहे है । फिर चाहे वो 1/9/1994 का खटीमा गोलीकांड हो या बिग्राबाग गांव का शहीद द्वार खटीमा की इस वीर धरती ने देश या अपने राज्य के सेवा में बड़ चढ़ कर भाग लिया है तथा इसे गौरवानवीत किया है ।
पीलीभीत टाइगर रिजर्व से लगे सुरई रेंज में क्रोकोडाइल सफारी के खुलते ही पर्यटन के छेत्र में एक अच्छा विकल्प हो सकता है , जो खटीमा से काफी पास पड़ता है ।
इसी के साथ भारा मल बाबा का आश्रम और व्यांधुरा एक अच्छा ट्रैकिंग छेत्र है जिसे हम घूम सकते है Travel My Dream पर ।
उधम सिंह नगर और उसकी ये तहसील खटीमा में अधिकतर थारू जनजाति का निवास हैं। जो उत्तराखंड में पाई जाने वाली 5 जनजातियों में से एक है । जिनके बारे में हम अपनी आगे के जर्नी में जानेंगे।
खटीमा से 12 किलोमीटर पश्चिम में चले तो श्री नानकमत्ता साहिब का गुरुद्वारा और उसके सच्चे मन से किए दर्शन से एक उच्च आध्यामिकता की अनुभूति होती है जिसे आजकल के भाषा में लोग पॉजिटिव वाइव्स कहना ज्यादा पसंद करते है।
और आप खटीमा से पूर्व की ओर चले तो 24 किलोमीटर के दूरी पर टनकपुर में माता पूर्णा गिरी का धाम जिसका नाम सुन कर मैं निसब्द सा हो गया कुछ समय के लिए की माता के बारे में क्या लिखूं माता की महिमा तो जितनी कहिए उतनी कम है।
चलिए आइए फिर खटीमा घूमते है आप के साथ ।